Read Divine Stories That Bring Spiritual Enlightenment, Positivity, Faith & Blessings

सकट चौथ / संकष्टी चतुर्थी 2026: विघ्नहर्ता गणेश जी और सकट माता की कृपा का दिव्य पर्व

सकट चौथ / संकष्टी चतुर्थी भारतीय सनातन परंपरा का एक अत्यंत पावन व्रत है, जो विशेष रूप से संतान की रक्षा, दीर्घायु, सुख-समृद्धि और परिवार के कल्याण के लिए रखा जाता है। यह व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश और सकट माता की आराधना के साथ मनाया जाता है। इस दिन माताएँ निर्जल या फलाहार व्रत रखकर, तिल-गुड़ का भोग अर्पित कर और चंद्र दर्शन के पश्चात व्रत का पारण करती हैं। यह ब्लॉग सकट चौथ के धार्मिक महत्व, पूजा विधि, व्रत कथाएँ, मंत्र और आस्था से जुड़ी भावनात्मक कहानियों को विस्तार से प्रस्तुत करता है। साथ ही इसमें यह भी बताया गया है कि क्यों यह व्रत केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि माँ की ममता, श्रद्धा और विश्वास की जीवंत अभिव्यक्ति है। यदि आप सकट चौथ के वास्तविक भाव, परंपरा और आध्यात्मिक संदेश को गहराई से समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए उपयोगी और प्रेरणादायक सिद्ध होगा।

Priyanka

12/26/20251 min read

1. सकट चौथ / संकष्टी चतुर्थी – संतान सुख, श्रद्धा और विश्वास का पावन पर्व

भारतीय सनातन परंपरा में सकट चौथ (जिसे संकष्टी चतुर्थी या सकट चतुर्थी भी कहा जाता है) का विशेष महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से संतान की रक्षा, सुख-समृद्धि और परिवार के कल्याण के लिए रखा जाता है। यह व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है और भगवान गणेश जी को समर्पित होता है, जिन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन कहा गया है।

वर्ष 2026 में सकट चौथ का पावन व्रत 6 जनवरी 2026, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन माताएँ निर्जल या फलाहार व्रत रखकर अपने बच्चों की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद विधि-विधान से व्रत का पारण किया जाता है।

सकट चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह आस्था, त्याग और मातृत्व की शक्ति का जीवंत प्रतीक है, जहाँ माँ की सच्ची प्रार्थना और भगवान गणेश की कृपा मिलकर हर संकट को दूर कर देती है।

2. सकट चौथ में भगवान गणेश जी का महत्व

सकट चौथ / संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश जी के बिना अधूरा माना जाता है। यह पर्व मूल रूप से विघ्नहर्ता गणेश को समर्पित है, क्योंकि वे ही समस्त संकटों को दूर करने वाले, बुद्धि के दाता और शुभारंभ के स्वामी हैं। सकट चौथ के दिन गणेश जी की पूजा विशेष रूप से संतान की रक्षा, दीर्घायु और जीवन की बाधाओं से मुक्ति के लिए की जाती है।

धार्मिक मान्यता है कि माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश ने माता पार्वती को संतान-सुख का वरदान दिया था। तभी से इस तिथि पर माताएँ गणेश जी की आराधना करती हैं और अपने बच्चों के लिए व्रत रखती हैं। गणेश जी को बालरूप और मातृभक्त माना गया है, इसलिए माँ की प्रार्थना उन्हें शीघ्र ही प्रसन्न कर देती है। जहाँ गणेश जी का नाम होता है, वहाँ विघ्न टिक नहीं पाते, और जहाँ माँ की सच्ची श्रद्धा होती है, वहाँ गणेश जी स्वयं रक्षक बन जाते हैं। 🙏

3.सकट चौथ में सकट माता का महत्व

सकट चौथ के व्रत में सकट माता का विशेष और केन्द्रीय महत्व है। सकट माता को लोक-परंपरा में माँ स्वरूपा देवी माना गया है, जो अपने भक्तों की संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन से हर प्रकार के संकट को दूर करती हैं। यही कारण है कि इस व्रत को विशेष रूप से माताओं का व्रत कहा जाता है। सकट चौथ में सकट माता का महत्व इसलिए है क्योंकि वे माँ की ममता बनकर भक्तों के जीवन से संकट हर लेती हैं और अपने आशीर्वाद से घर-परिवार को सुखी बनाती हैं। 🙏

मान्यता है कि सकट माता ममता, करुणा और धैर्य की प्रतीक हैं। वे उन माताओं की पुकार सबसे पहले सुनती हैं, जो अपने बच्चों के लिए निःस्वार्थ भाव से व्रत और पूजा करती हैं। सकट चौथ के दिन सकट माता को तिल, गुड़, तिलकुट और सादा भोग अर्पित किया जाता है। उनकी पूजा से संतान को दीर्घायु, स्वास्थ्य और जीवन में सुरक्षा कवच प्राप्त होता है।

4.सकट चौथ की पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें

  • दिनभर निर्जल या फलाहार व्रत रखें

  • घर के पूजा स्थान को साफ कर चौकी पर गणेश जी और सकट माता का

    चित्र/प्रतिमा स्थापित करें। दीपक और धूप जलाएँ।

  • पूजा सामग्री में तिल, गुड़, तिलकुट या तिल के लड्डू, दूर्वा, मोदक, फूल,

    और जल रखें।

  • शाम को पहले गणेश जी का ध्यान कर दूर्वा, तिल-गुड़ और मोदक अर्पित करें,

    फिर सकट माता को तिल-गुड़ का भोग लगाएँ। इसके बाद श्रद्धा से व्रत कथा पढ़ें या सुनें।

  • रात्रि में चंद्र उदय होने पर खुले स्थान में जाकर चंद्र दर्शन करें।

    चंद्रमा को जल/दूध से अर्घ्य दें और गणेश जी व सकट माता से संतान कल्याण

    की प्रार्थना करें।

  • चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत का पारण करें—पहले प्रसाद ग्रहण करें, फिर सादा भोजन करें।

    विशेष: इस दिन तिल से बनी चीज़ों का दान और भोग अत्यंत शुभ माना जाता है।

5.सकट चौथ व्रत कथा 📜

🌼 सकट चौथ की पहली व्रत कथा- "देवरानी–जेठानी और सकट माता की कृपा "

किसी गाँव में एक घर में देवरानी और जेठानी रहती थीं। जेठानी बहुत अमीर थी। उसका घर धन-धान्य से भरा था, परिवार बड़ा और सुखी था। इसके विपरीत देवरानी अत्यंत गरीब थी। उसकी गरीबी ऐसी थी कि वह अपना पेट भरने के लिए भी जेठानी की सेवा-टहल किया करती थी। दिन भर मेहनत करने के बाद जेठानी जो थोड़ा-बहुत चूनी-चोकर दे देती, देवरानी उसे अपनी छोटी-सी झोपड़ी में लाकर पका लेती।
फूटे हुए घड़े से पानी पीती, टूटी हुई चारपाई पर सो जाती और सुबह होते ही फिर सेवा में लग जाती।

साल भर का बड़ा त्योहार आया — सकट चौथ। उस दिन भी देवरानी भूखी-प्यासी जेठानी के घर काम करती रही। रात को जब घर लौटने लगी, तो उस दिन चूनी-चोकर भी नहीं दिया गया। खाली हाथ और उदास मन से वह अपनी झोपड़ी लौटी। खेत से थोड़ा बथुआ तोड़ लाई, घर में पड़े थोड़े-से चावल के कण ढूँढ़कर इकट्ठा किए। उन्हीं कणों से कन के लड्डू बनाए और बथुआ का सादा-सा साग पका लिया। आधी रात को टटिया के बाहर से आवाज आई— “ब्रह्मणी, किवाड़ खोलो।

देवरानी ने विनम्रता से कहा— “माता, किवाड़ कहाँ हैं, टटिया ही है। चली आइए।” भीतर आते ही सकट माता बोलीं“मुझे बड़ी भूख लगी है।” देवरानी ने हाथ जोड़कर कहा— “माता, जो कुछ मेरे पास है, वही है। कृपा कर स्वीकार करें।” उसने कन के लड्डू और बथुआ का घोंधा माता के आगे रख दिया। माता ने प्रेमपूर्वक भोजन किया। भोजन के बाद माता ने पानी माँगा। देवरानी फूटी गगरी में पानी ले आई। फिर माता ने विश्राम की इच्छा जताई, तो उसने टूटी खाट दिखा दी। कुछ देर बाद माता ने कहा— “मुझे शौच जाना है।” देवरानी बोली— “माता, सारा घर लीपा-पुता है, जहाँ उचित समझें कर लें।” माता ने पूरे घर में गंदगी कर दी। फिर बोलीं— “अब कहाँ करूँ?” देवरानी ने बिना संकोच कहा— “माता, अब मेरे सिर पर कर दीजिए।” सकट माता ने उसे सिर से पाँव तक गंदगी से नहला दिया और अंतर्धान हो गईं। सुबह जब देवरानी उठी, तो उसकी झोपड़ी कंचनमयी हो चुकी थी। चारों ओर सोना ही सोना बिखरा पड़ा था। वह जितना समेटती, उतना ही सोना बढ़ता जाता।

जब देवरानी समय पर काम पर नहीं पहुँची, तो जेठानी क्रोधित हुई। लड़के को भेजा। जो दृश्य उसने देखा, उसे देखकर जेठानी का मन काँप उठा। देवरानी ने सहज भाव से कहा— “यह सब सकट माता की कृपा है”। जेठानी ने पूछा ऐसी क्या सेवा की तूने जो सकट माता प्रसन्न हो गई। देवरानी बोली मैंने तो कुछ नहीं किया। केवल कन के लड्डू और बथुवा के घोंधा दिये थे खाने को। इस प्रकार उसने सब कुछ बता दिया। जेठानी घर आई और गरीबों की तरह रहने लगी। साल भर बाद जब सकट माता का त्योहार आया तो देवरानी की भाँति कनक के लड्डू बनाये और बथुआ के धोंधा बनाये। फूटी गगरी और टूटी चारपाई रख दी। और सकट माता की राह देखने लगी। रात में सकट माता ने दरवाजा खटखटाया। जेठानी ने कहा माता किवाड़े कहाँ हैं टटिया खोल आ जाओ। सकट माता ने जो पिछले साल देवरानी के साथ किया था वही सब किया। जेठानी ने कहा माता जो कुछ है खाओ पियो तुमसे कुछ छिपा तो नहीं है। सकट माता ने खाया-पिया और टाँग फैलाकर सोई और आधी रात को घर तथा जेठानी को टट्टी से नहला दिया और माता चली गई। सुबह हुई लड़के-बच्चो ने देखा चारो तरफ गन्दगी ही गन्दगी फैली है। जेठानी भी गन्दगी से नहाई निकली, चलना कठिन था। सारा घर बदबू से भर गया। उन्होंने कहा तुमने यहा क्या किया ? जेठानी ने खिसियाकर देवरानी को बुलाया, देवरानी आई। जेठानी ने बड़े ताने से कहा तुमने जो कहा था वह कुछ न हुआ। देवरानी ने समझाया—
“मेरी गरीबी सच्ची थी, तुम्हारी नकल थी।
माता भाव देखती हैं, अभिनय नहीं।”

🌼 सकट चौथ की दूसरी व्रत कथा - 🏺 कुम्हार और सकट माता की महिमा 🏺

एक नगर में एक कुम्हार रहता था। वह जब भी बर्तन बनाकर आंवा लगाता, आंवा पकता ही नहीं था। थक-हारकर वह राजा के पास पहुँचा। राजा ने पंडितों से कारण पूछा। राज पंडित ने कहा— “जब तक आंवा लगाते समय बाल-बलि नहीं दी जाएगी, आंवा नहीं पकेगा।” राजा की आज्ञा से बलि आरंभ हो गई। हर परिवार से एक-एक बच्चा भेजा जाने लगा। कुछ दिनों बाद सकट चौथ के दिन एक बुढ़िया के बेटे की बारी आई। वही उसका एकमात्र सहारा था। बुढ़िया ने बेटे को सकट की सुपारी और दूब देकर कहा— “भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना। सकट माता रक्षा करेंगी।” वह स्वयं सकट माता की पूजा में बैठ गई "तिल-तिल सकट मनाऊँ, और सकट की रात महतारी-पूत बिछुड़न कबहुँ न होय।"

उस रात चमत्कार हुआ। जो आंवा कई दिनों में पकता था, वह एक ही रात में पक गया। सुबह कुम्हार ने देखा — आंवा भी पक गया था और सभी बच्चे सुरक्षित थे। नगरवासियों ने सकट माता की महिमा स्वीकार की। तभी से सकट चौथ की विधिवत पूजा होने लगी।

🌼 सकट चौथ की तीसरी व्रत कथा - 🌾 तिल-गुड़ और सकट माता की कृपा की अद्भुत कहानी 🌾

प्राचीन समय की बात है। एक राजा था, परंतु उसके कोई संतान नहीं थी। यह बात उसे भीतर ही भीतर बहुत दुखी रखती थी। एक दिन राजा अपने महल के द्वार पर बैठा था। तभी उधर से एक भंगिन गुज़री और दूसरी स्त्री से कहने लगी— “आज सुबह से ही निर्वंशी राजा का मुँह देखा है, देखो आज दिन कैसा बीतेगा।” राजा ने यह बात सुन ली। यह सुनकर उसका हृदय अत्यंत दुखी हो गया। वह बिना कुछ बोले महल के भीतर जाकर लेट गया। सभी रानियाँ आईं और राजा से भोजन करने को कहा, पर राजा ने मना कर दिया। उसने कहा— “इतना बड़ा राज्य, इतनी रानियाँ, फिर भी पुत्र नहीं। एक साधारण स्त्री की बात ने मेरा मन तोड़ दिया है।”

महल का वातावरण उदास हो गया। तभी छोटी रानी की दासी, जो बहुत चतुर थी, ने रानी से कहा— “रानी जी, आप चिंता न करें। आप जो भी देखें, चुपचाप देखती रहिए। राजा का दुख अवश्य दूर होगा।” दासी राजा के पास गई और बोली— “राजा जी, उठिए, भोजन करिए। छोटी रानी गर्भवती हैं।” यह सुनते ही राजा अत्यंत प्रसन्न हो गया। उसने भोजन किया और नौ महीने तक पुत्र के जन्म की प्रतीक्षा करता रहा। समय आने पर दासी ने कक्ष में पर्दे लगवा दिए और राजा से कहा— “राजा जी, आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।”

राजा ने बड़े उत्सव किए, दान-पुण्य किया और दासी से पुत्र दिखाने को कहा। दासी ने टालते हुए कहा— “राजा, अभी उसके गुण ठीक नहीं हैं, पसनी में देखिएगा।” समय बीतता गया। कभी मुण्डन, कभी अन्य संस्कार के बहाने दासी बात टालती रही। छोटी रानी बहुत दुखी रहती थी और डरती थी कि जब सच्चाई सामने आएगी तो सब नष्ट हो जाएगा। पर दासी उसे धैर्य बँधाती रही। सोलह वर्ष बाद विवाह का समय आया। दासी ने राजा से कहा कि वह भी राजकुमार के साथ डोले में चलेगी। विवाह तय हो गया। बारात निकली। दासी ने एक बड़ी थाली में तिल और गुड़ से बना पुतला रखकर उसे ढक दिया और डोली में बैठा लिया।

रास्ते में बारात रुकी। डोली एक पीपल के चबूतरे पर रख दी गई। दासी तालाब में स्नान करने चली गई। उसी पेड़ के नीचे सकट माता विराजमान थीं। उन्होंने देखा कि डोली के आसपास चींटियाँ चल रही हैं। डोली खोलकर देखा तो थाली में तिल–गुड़ रखा था। माता ने उसे प्रसाद समझकर खा लिया। जब दासी लौटी और थाली खाली देखी, तो वह रोने लगी और सकट माता के चरण पकड़ लिए— “माता, मेरा बेटा वापस दीजिए। वही थाली में था।” सकट माता संकट में पड़ गईं, उन्होंने कहा— “ठीक है, मेरा पैर छोड़ो।” और माता ने उसे सोलह वर्ष का सुंदर राजकुमार प्रदान कर दिया।

बारात जब पहुँची, राजा ने कहा— “अब तो राजकुमार दिखाओ।” दासी ने पालकी का पर्दा उठाया। राजा सुंदर राजकुमार को देखकर चकित रह गया। विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। जब बारात लौटी, छोटी रानी ने पुत्र और बहू को देखा तो आनंद से भर उठी। दासी बोली—
“रानी, हम सवा पसेरी का लड़का बनाकर ले गए थे। अब आप सवा मन तिल–गुड़ बनाकर प्रसाद बाँटिए"। यह सब सकट माता की कृपा से हुआ है।” यह कथा सिखाती है कि सकट माता सच्चे भाव और श्रद्धा से प्रसन्न होती हैं। तिल–गुड़ जैसी साधारण वस्तु भी जब विश्वास से अर्पित की जाए, तो वह चमत्कार कर सकती है। 🙏

6.सकट चौथ में चंद्र-दर्शन 🌙 के समय उपयोगी मंत्र

🌸 1. सकट माता को अर्पित चंद्र-दर्शन मंत्र - चंद्रमा को देखकर सबसे पहले यह मंत्र बोलें:

"सकटे मम संतानं रक्ष रक्ष गणाधिपे। कुरु मे दुःख नाशं च दीर्घायुष्यं प्रदेहि मे"॥

अर्थ: हे सकट माता और गणेश जी! मेरी संतान की रक्षा करें, मेरे दुःखों का नाश करें और उन्हें दीर्घायु प्रदान करें।

🌸 2. भगवान गणेश का चंद्र-दर्शन मंत्र (मुख्य मंत्र)

"गणाधिप नमस्तुभ्यं चन्द्रदर्शन काम्यया। संकटं हर मे देव पुत्रपौत्र विवर्धनम् "॥

अर्थ: हे गणेश जी! चंद्र-दर्शन के साथ आपको प्रणाम है। मेरे संकट दूर करें और संतान-सुख प्रदान करें।

🌸 3. सकट चौथ का विशेष लोक-मंत्र (अत्यंत लोकप्रिय) - यह मंत्र गाँवों और घरों में पीढ़ियों से बोला जाता है:

"तिल-तिल सकट मनाऊँ, सकट की रात। माँ मेरी रक्षा करना, पूत रहे सदा साथ"॥

7. सकट चौथ में चंद्र दर्शन 🌙 क्यों किया जाता है?

सकट चौथ का व्रत चंद्र दर्शन के बिना अधूरा माना जाता है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला यह व्रत भगवान गणेश और सकट माता को समर्पित होता है, और चंद्रमा इस व्रत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। शास्त्रों और लोक-परंपराओं के अनुसार, चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है, क्योंकि चंद्रमा को मन, भावनाओं और मातृत्व का प्रतीक माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि सकट चौथ की रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर और उनके दर्शन कर भगवान गणेश की पूजा करने से संतान संबंधी सभी संकट दूर होते हैं। चंद्रमा शीतलता, धैर्य और मानसिक शांति प्रदान करते हैं, इसलिए माताएँ अपने बच्चों की लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के साथ चंद्रमा को नमन करती हैं।

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान गणेश पर चंद्रमा ने हँस दिया था, जिससे चंद्रमा को श्राप मिला। बाद में गणेश जी ने चंद्रमा को क्षमा कर विशेष तिथियों पर पूज्य बना दिया। इसी कारण संकष्टी चतुर्थी और सकट चौथ पर चंद्र दर्शन का विशेष महत्व माना गया है। यह दर्शन अहंकार के त्याग और क्षमा के भाव का भी प्रतीक है। इसी कारण सकट चौथ के दिन चंद्र दर्शन के बिना व्रत पूर्ण नहीं माना जाता, और श्रद्धा के साथ किया गया यह दर्शन जीवन के हर संकट को शांत करने वाला माना गया है।

🪔 सकट माता की आरती

जय जय सकट माता, संकट हरने वाली।
भक्तों की पीड़ा हरती, जग में महिमा न्यारी॥

माँ तुम करुणा की सागर, ममता की प्रतिमूर्ति।
संतान की रक्षा करती, करती सबकी पूर्ति॥
जय जय सकट माता, संकट हरने वाली॥

तिल-गुड़ का भोग लगे, दूर्वा तुम्हें है प्यारी।
सच्चे मन से जो ध्यावे, उसकी नैया तारी॥
जय जय सकट माता, संकट हरने वाली॥

गणेश जी संग विराजे, देती मंगल दान।
दुख-दरिद्र सब हर लेती, रखती सबका मान॥
जय जय सकट माता, संकट हरने वाली॥

माँ तेरी शरण जो आया, भय उसका मिट जाए।
जीवन पथ के हर विघ्न को, पल में दूर भगाए॥
जय जय सकट माता, संकट हरने वाली॥

आरती जो नर-नारी, श्रद्धा से गावे।
संतान सुख और सौभाग्य, माँ से पा जावे॥
जय जय सकट माता, संकट हरने वाली ॥

8.🌺 निष्कर्ष | सकट चौथ का संदेश

सकट चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि माँ की ममता, श्रद्धा और अटूट विश्वास का पर्व है। यह व्रत सिखाता है कि ईश्वर की कृपा पाने के लिए आडंबर नहीं, सच्चा भाव आवश्यक है। भगवान गणेश की कृपा और सकट माता की करुणा से संतान के जीवन से हर संकट दूर होता है। तिल-गुड़ जैसे साधारण प्रसाद भी जब प्रेम और विश्वास से अर्पित किए जाते हैं, तो वे दिव्य बन जाते हैं। सकट चौथ हमें धैर्य, त्याग और सकारात्मक सोच का संदेश देता है तथा यह विश्वास जगाता है कि सच्ची भक्ति से हर विघ्न का अंत संभव है। 🙏

References:

Sharma, H. (2012). Hindu vrat evam tyohar. Bhaktichar Prakashan, Varanasi.

Vyas, D. (2008). Vratarajah. Sanskriti Prakashan, Lucknow.

Gupta, R. P. (2010). Hindu dharma mein vraton ka mahatva. Dharmagyan Prakashan, Delhi.

Sharma, R. C. (2009). Vrat katha sangrah. Gita Press, Gorakhpur.

Sharma, N. (2014). Lok aastha evam vrat kathayen. Lokbharati Prakashan, Prayagraj.

Sharma, C. (2011). Puja vidhi evam mantraavali. Sanatan Pustakalaya, Jaipur.

Shraddhanand, S. (2005). Bharatiya dharma aur sanskriti. Arya Prakashan, Delhi.

🙏 धन्यवाद

इस लेख को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। आशा है कि सकट चौथ / संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी जानकारी, कथाएँ और पूजा विधि आपके लिए उपयोगी रही होंगी। भगवान गणेश और सकट माता आप सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें। 🌸

💬 अपनी राय साझा करें (Leave your comment)

क्या यह लेख आपको पसंद आया?
नीचे कमेंट करके अपनी राय, अनुभव या प्रश्न साझा करें।
आपका सुझाव हमें बेहतर सामग्री बनाने की प्रेरणा देता है।

इस लेख को अपने परिवार और मित्रों के साथ साझा करना न भूलें।